(लोर्का की याद में)
तीसरा पहर कहता है : मैं छाया के लिए प्यासा हूँ
चाँद कहता है : मुझे तारों की प्यास है.
बिल्लोर की तरह साफ़ झरना होंठ मांगता है
और हवा चाहती हैं आहें.
मैं प्यासा हूँ खुशबु और हंसी का
मैं प्यासा हूँ चंद्रमाओं, कुमुद्नियो
और झुर्रीदार मुहब्बतों से मुक्त
गीतों का.
कल का एक ऐसा गीत
जो भविष्य के शांत जलों में हलचल मचा दे
और उसकी लहर और कीचड को आशा से भर दे.
एक दमकता, इस्पात-जैसा ढला गीत
विचार से समृद्ध
पछतावे और पीड़ा से अम्लान
उड़ान भरे सपनो से बेदाग़.
एक गीत जो चीज़ों की आत्मा तक
पहुँचता हो, हवाओं की आत्मा तक
एक गीत जो अंत में अनंत हृदय के
आनंद में विश्राम करता हो.
-लोर्का