गंगा में शंख और सीप नहीं अनिश्चितताओं की पोटली, लूट के पैकेट और
पन्नी में लिपटे हथियार तैर रहे,
सूंस मर चुकीं।
नदी किनारे से संवाद नहीं कर पा रही,
संघ के बुड्ढे रक्तचाप बेहतर रखने के लिए नकली हँसी हँसते हैं,
नदी के वफ़ादार आवारा कुत्ते मालिकों के साथ आये
पालतू कुत्तों पर भौंकते हैं।
मुखौटे ही चेहरे हैं,
बाज़ार में पटे सामानों में आत्मा है,
आह, मैं खुद को गंगा में उगते सूरज में खोजना चाहता था
पर यह क्या मिल गया?