Sunday, February 2, 2025

ये झण्डे जो तुम्हारे ख़ून के गवाह हैं

 सुबह-सुबह कोयले का काला धुआँ

भरता जा रहा है जिन कोठरियों में
वहीं खींची जाएगी
युद्ध की रेखा
और हमारे हृदयों में

ये झण्डे जो तुम्हारे ख़ून के गवाह हैं

जब तक इनकी संख्या
कई गुना बढ़ नहीं जाती
सिर्फ़ लहराते ही नहीं रहें
और तेजी से फड़फड़ाने लगें

अक्षय वसन्त के इन्तज़ार में
लाखों-हज़ार पत्तों की तरह

नेरुदा

(कविता:मैं दण्ड की माँग करता हूँ, शशि प्रकाश द्वारा अनुदित, चित्र: 'तैयारी', विनोद)