उस समय के स्वप्न अभी भी देखे जाते थे,
रंग जब प्रकट करेंगे,
न सिर्फ रोशनी को जो चीज़ों से निकलती है
बल्कि उस रोशनी को भी
जो कलाकार के दिमाग में निवास करती है।
और तब भी हम असंतुष्ट होंगे
और बड़बड़ाएंगे कुछ वैसा ही,
खुशमिजाज़ी के साथ,
जैसा
पाब्लो पिकासो ने कहा था-
"वे तुम्हें हज़ारों किस्म के हरे बेचेंगे।
वेरोनीज़ हरा और एमराल्ड हरा और कैडमियम हरा और
हर किस्म का हरा,
जिसे तुम पसंद करोगे, पर वह खास किस्म का हरा
कत्तई नहीं।"
और जीवन में रंग होंगे
और रोशनी और गर्माहट
और इन सबको और अधिक पाने की चाहत।
रंग तब अर्थों से दूषित नहीं होंगे
न बंधे होंगे किसी रूपकार से
और वे हज़ारों तरीकों से गुफ्तगू करेंगे
आत्मा के साथ
जैसा कभी सोचा था
ऑस्कर वाइल्ड ने।
"रंग अचेतन की कुंजी"-
जुंग शायद ठीक ही कहता था,
कि हम इस समय रंगों के बारे में इतनी बातें कर बैठे
जब नयी सदी के तीन वर्ष बीत चुके हैं
और नए रूपों में आयी थीं जो पुरानी आपदाएं,
वे पुरातन-आदिम आशाओं की
नयी फसल की बुवाई के लिए
ज़मीन तैयार कर रही हैं।
फिर भी हममें से हर एक के पास हैं
कुछ निराशाएं,
हम, जो कभी भी हिम्मत नहीं हारे थे पूरी तरह
और जो लगातार स्मृति और स्वप्न से
बुनते थे रहे थे नयी परियोजनाएं।
हाँ, हमारी भी थीं कुछ निराशाएं।
आखिर में, जहाँ तक मेरी अपनी बात है,
लोगों को मैंने हमेशा आशाओं के बारे में बताया
और अपनी थोड़ी सी निराशा को
यहाँ-वहाँ, कविताओं के बीच
छुपाने की कोशिश की
और वह कोशिश देख ली गयी
और मैंने पाया कि
लोगों के पास हैं अक्षय आशाएँ
और यह भी कि
वे मुझे प्यार करते हैं।
कात्यायनी
जनवरी, 2004