Thursday, April 17, 2014

इस पुल पर

Adebanji Alade
Silver morning light from Wandsworth Bridge
कई-कई नींदों की सुरंगों से
गुजरने के बाद,
सन्नाटे की कई-कई बस्तियों को
पीछे छोड़कर
खड़ा हूँ इस पुल पर
जो यूद्धनाद की लय से बना है
और यह लय बन रही है ज़िन्दगी
त्यागकर रूपक का स्वप्निल परिधान।
यहाँ से होकर
गुज़रते नहीं काठ के घोड़े।
आवारगी और इंतज़ार,
सांसारिक वासनाओं और ठोस कामनाओं,
बेचैन-बेकल गद्य और अटपटी कविताओं,
बेसुरे गीतों और उदास चुप्पियों,
पागल स्वप्नों और ज़मींदोज़ यादों,
अनगढ़ और अधबने विचारों
और बेशर्मियों
और आत्मालोचनाओं
और हमारे समय की बहुतेरी असंभव-सी चीज़ों के साथ
आते हैं यहाँ कुछ यायावर
ज़िन्दगी की ताजपोशी का गवाह बनने की
चाहत संजोये हुए।
नीचे खौलता रहता है
मटमैला पानी
दिनचर्या में व्यग्र कोलाहल घोलते हुए,
निरंतर अनिश्चितता को जन्म देती ज्वालमुखियां उबलती-दहकती रहती हैं और
पिघलते रहते हैं गंधक और लोहा
और कुछ और उपयोगी-अनुपयोगी खनिज,
जब चीर दिए जाते हैं हृदय
और गर्म-गाढ़ा रक्त पसीने और आंसुओं के प्रतीक्षारत सागर तक की
सुदूर यात्रा पर रवाना हो जाता है।
पदार्थ में स्थान पाती है
सदिश चेतना
और भविष्य एक-एक करके
अपने रहस्य खोलकर रखने लगता है।
आश्चर्य और आह्लाद की
आहटें होती है आसपास,
लेकिन तबतक बहुत सारे लोग
लौट भी चुके होते हैं
थककर, घबराकर या डरकर,
अपनी क्षुद्रताओं में,
इस विचित्र जीवन जगत की यादगार के तौर पर चोरबगलियों में भरे हुए
कुछ कंचे और कुछ भ्रामक चमकते पत्थर
जो सुख, यश और निर्विकार चिंतन के लिए
काफी हुआ करते हैं।
इधर, मानो जादू के जोर से
यह पुल कभी स्वयं
एक युयुत्सु जल-प्रवाह बन जाता है
और कभी
दुर्गम वनों के बीच से गुज़रता
एक ऐसा रास्ता
जिस पर केवल दुर्दांत बवंडर
यात्रा किया करते हैं।  

शशि प्रकाश, १९९५

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