Tuesday, May 16, 2023

खोज

 एक बन्द रास्ते तक पहुँचा हूँ । 

कई बार आगे बढ़ने के लिए कुछ कदम पीछे हटना ही होता है। 

यहाँ से भी वापस मुड़ना ही है। 


एक ही जगह थमे रहना मुमकिन नहीं, रुकना और ठहरे रहना ही पतन है, 

कमज़ोर संकल्पों और समझौतों को आँसुओं और दुख से नहीं ढका जा सकता है। 

रास्ते खत्म हो तो भी आगे बढ़ना ही है,

पीछे मुड़कर पुनः बढ़ना होगा आगे ही। 

रक्त को मवाद से अलगाना है। 

काले को सफेद से। 

गलत को सही से। 


पीछे मुड़ते ही स्मृतियों और ख़्वाब के गहरे नीले जल में डूब जाता है शहर

माँ की डायरी से अकेलेपन की कथा कोई पढ़ रहा एक ऊँची इमारत से। 

वज़ीरपूर के मज़दूर गुज़र रहे मार्च बनाकर। 

हट रहा हूँ पीछे और आत्मा का एक हिस्सा नष्ट हो रहा। 

तेज़ाब मेरी आँखों से ही बह रहा। 

खुद में ही घुल रहा मैं, 

ख्वाबों और स्मृतियों में ढल रहा मेरा एक हिस्सा, 

अपने को गढ़ना ही होगा

जैसे सूरज से अलग हो धूँ धूँकर धधकती धरती ने गढ़ा जीवन। 

जो यह न कर सके वो इंतज़ार के कैदखानों को मुक्ति मानते 

रहे और अपने समझौतों पर मानवीयता का मुलम्मा चढ़ाते रहे। 


सिर्फ एक समझौता भी प्रतिबद्धता के पर्वत में दरार जैसा होता है

क्रान्तिकारी पक्षधर्ता के जहाज में सुराग जैसा

कितना ही छोटा हो सुराग 

जहाज को डुबा देता है, 

या सूक्ष्म हो दरार कितनी भी

पर्वत को गिरा देती है, 



इससे कौसों दूर सागर में डूबता है सूरज 

मैं रेत में खोज रहा हूँ अपना दिल। 






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