हमारे युग में दुर्लभ हो चुका
एक मानवीय गुण है – सिद्धान्तनिष्ठा,
जिसे सहज आदत बनाने के लिए
एक ही जीवन में कई-कई बार
फिर से जनम लेना होता है
और कई-कई बीहड़ यात्राएँ करनी होती हैं।
जीवन कुछ यूँ जीना
जैसे कोई समूह गान गाया जा रहा हो,
जैसे छापामारों की कोई टुकड़ी
ज़िम्मेदारियाँ बाँटकर हमले की तैयारी कर रही हो
अगले मुकाम की ओर जल्दी से जल्दी
बढ़ने की बेचैनी के साथ
इसके लिए कई बार अपनी ही राख से
फ़िनिक्स पक्षी की तरह पंख फड़फड़ाते हुए
फिर-फिर जीवन में प्रवेश करना होता है।
कई बार एक पूरा जीवन प्रतीक्षा होता है प्यार की
और एक दूसरा जीवन मिलता नहीं
उसका मोल समझने के लिए।
कविता सा जीवन
एक चिरन्तन स्वप्न होता है
जीवन-सी कविता के पंखों से उड़ते हुए
आजीवन हम जिसका पीछा करते हैं।
इसी तरह सपनों की कविता
और कविता जैसे जीवन का पीछा करते हुए
जो क्षितिज की ओर उड़ते चले जाते हैं
और आकाश की निस्सीम गहराइयों में
जादू की तरह खो जाते हैं
वे घोंसले कभी नहीं बनाते हैं।
कात्यायनी
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