Wednesday, December 15, 2010

जैक लन्डन की कविता

धुल की जगह राख होना चाहूँगा मैं
मैं चाहूँगा कि एक देदीप्यमान ज्वाला बन जाये
भड़ककर मेरी चिंगारी
बजाय इसके कि सड़े काठ में उसका दम घुट जाये,
एक उंघते हुए स्थायी गृह के बजाय
मैं होना चाहूँगा एक शानदार उल्का
मेरा प्रत्येक अणु उद्दीप्त हो भव्यता के साथ,
मनुष्य का सही काम है जीना, न कि सिर्फ जीवित रहना,
अपने दिनों को मैं बर्बाद नहीं करूँगा
उन्हें लम्बा बनाने कि कोशिश में,
मैं अपने समय का इस्तेमाल करूँगा.
जैक लन्डन

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