Monday, October 31, 2011

बाढ़ और पेड़


जब शैतानी आंधी दौड़ पड़ी 
और क्रूर किनारे उगलने लगे बाढ़ का काला पानी 
हमारी प्यारी हरी-भरी धरती पर 
शैतान हुंकारने लगा हवाओ में 
वह पेड़ गिर पड़ा 
उस पेड़ को गिरा दिया गया 
उसका विशाल तना तोड़ दिया 
आंधी ने 
वह पेड़ मर गया 

पेड़, क्या तुम मर सकते हो 
छोटी लाल नदी ने पुछा 
तुम्हारी जड़ें सिंची गयी हैं 
शराबों से 
जो निकाली गयी हैं 
नरम शाखाओं से 
प्यारे पेड़ 
अरब की जड़ें 
कभी मरती नहीं 
वे गहरे जाती हैं 
पत्थरों से भी नीचे 
और धरती की गहराई में 
अपना रास्ता बना लेती हैं 
पेड़, ओ पेड़ 
तुम फिर उगोगे 
तुम्हारी कोंपले फूटेंगी 
हरी हरी और रसीली 
सूरज की रोशनी में 
खुशियों की घंटियाँ
पत्तों में बजेंगी 
सूरज तक अपनी आवाज पहुंचाएगी 
और लावा पक्षी 
लोट आयेंगे 
अपने घर 
अपने घर
अपने घर 

फदवा तुकन 

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