Monday, May 28, 2012

सपने



इस धुंधलके में कई सपने बैचेन करते हैं।
एक सपना दुसरे सपने को निष्कासित कर देता है


और किसी तीसरे सपने से खुद-ब-खुद नष्ट हो जाता है।
निष्कासित सपना स्याही की तरह काला होता है
और जो टिका रहता है वह भी कम काला नहीं होता
मानो दोनों कह रहें हों ‘‘हमें देखो, कितनी गहरी है हमारी रंगत’’
हो सकता है वे बहुत अच्छे हों, लेकिन इस अँधेरे में
यह कहना मुश्किल है... अँधेरे में तो यह भी पता नहीं चलता
की उनमें से कौन बोल रहा है?
घना अँधेरा छाया है,
सिरदर्द और बुखार में पडे तुम कह नहीं सकते...
आओ, मेरे अच्छे सपने, तनिक मेरे पास आओ.....
                                           -लू शुन

Thursday, May 17, 2012

चाँद नहीं निकला मां




...बर्दाश्त करना पड़ता है बेटे!
बर्दाश्त करना हिम्मत हारना नहीं है 
हिम्मत को परवान चढ़ाना है 
जब लोगो की हिम्मत परवान चढ़ जाती है


 तो वे पहाड़ों को काट कर गंगा बहा लाते हैं 
चट्टानों को काट-कूट कर सिलबट्टे बना देते हैं 
जो तुम्हारे लिए हल्दी और उबटन पीसने के काम आती है 
सोंदर्य निखारने के लिए 
हालांकि सोंदर्य उस एहसास को कहते हैं बेटे!
जिससे आदमी आदमी की चाहत को अमली जामा 
पहनाता है 
सृजन ही सोंदर्य है
उस किसी भी चीज में सोंदर्य नहीं होता 
जो हमारी, हम सबकी और तमाम लोगों की 
चाहत नहीं बन सकती.
ऐसा नहीं होने पर लोग बदल देते हैं उधर से अपना रास्ता 
जहां खड़ी होती है कोई इमारत 
जहां ज़िंदा लाशें ताश के पत्ते फेटती हैं.

                                                                    -हरिहर  द्विवेदी  

Tuesday, May 15, 2012

Hours



All hours once seemed the same to me. 
But it appears 
   that they can be 



Like tiny droplets and like seas, 
Like mighty mountains and like fleas.

Some ages leave no trace behind 
By which to be recalled to mind; 
Millenniums— 
          Lilliputian midgets...


There also are 
          grand, glorious minutes— 
By them alone an age is prized 
And men—by them immortalised, 
In which we find 
                    full compensation 
For empty days, for all frustration.


These I knew too, when I drank love’s fill.
Each second I remember still; 
Worlds in themselves, they will extend 
Throughout my life until its end!

That great moment will ever last 
When Lenin said: "The die is cast”?



    Yes, 
          Lenin’s time spreads ever wider 
          Across our life—no sunlight brighter.

  

Thus in all things. 
 We measure time 
By clocks that tick and clocks that chime, 
But how to measure all the ages. 
That will be lived 
     by Shakespeare’s pages?


Translated by Louis Zellikoff
  SEMYON KIRSANOV