इस धुंधलके में कई सपने बैचेन करते हैं।
एक सपना दुसरे सपने को निष्कासित कर देता है
और किसी तीसरे सपने से खुद-ब-खुद नष्ट हो जाता है।
निष्कासित सपना स्याही की तरह काला होता है
और जो टिका रहता है वह भी कम काला नहीं होता
मानो दोनों कह रहें हों ‘‘हमें देखो, कितनी गहरी है हमारी रंगत’’
हो सकता है वे बहुत अच्छे हों, लेकिन इस अँधेरे में
यह कहना मुश्किल है... अँधेरे में तो यह भी पता नहीं चलता
की उनमें से कौन बोल रहा है?
घना अँधेरा छाया है,
सिरदर्द और बुखार में पडे तुम कह नहीं सकते...
आओ, मेरे अच्छे सपने, तनिक मेरे पास आओ.....
-लू शुन
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