...बर्दाश्त करना पड़ता है बेटे!
बर्दाश्त करना हिम्मत हारना नहीं है
हिम्मत को परवान चढ़ाना है
जब लोगो की हिम्मत परवान चढ़ जाती है
तो वे पहाड़ों को काट कर गंगा बहा लाते हैं
चट्टानों को काट-कूट कर सिलबट्टे बना देते हैं
जो तुम्हारे लिए हल्दी और उबटन पीसने के काम आती है
सोंदर्य निखारने के लिए
हालांकि सोंदर्य उस एहसास को कहते हैं बेटे!
जिससे आदमी आदमी की चाहत को अमली जामा
पहनाता है
सृजन ही सोंदर्य है
उस किसी भी चीज में सोंदर्य नहीं होता
जो हमारी, हम सबकी और तमाम लोगों की
चाहत नहीं बन सकती.
ऐसा नहीं होने पर लोग बदल देते हैं उधर से अपना रास्ता
जहां खड़ी होती है कोई इमारत
जहां ज़िंदा लाशें ताश के पत्ते फेटती हैं.
-हरिहर द्विवेदी
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