Thursday, October 25, 2012

कविता के बारे में...


कविता अपने तमाम प्रकट-अप्रकट, गोपन अगोपन सौंदर्य, अमूर्तन और दूसरी अभिलाक्षणिताओं के साथ, बुनियादी तौर पर रहस्य विरोधी है. कविता को रहस्य बनाना उसे राज्यसत्ता के पक्ष में खड़ा करना है. कविता को कर्मकांड बनाना उसे कर्मकांड के पक्ष में खड़ा करना है, जैसे कि कविता को विद्रोही बनाना उसे विरोध के पक्ष में खड़ा करना है. कविता की प्रेतपूजा, या उसके प्रति अंधश्रद्धा, माल-अंधश्रद्धा या माल की प्रेतपूजा (कमोडिटी फेटीशिज्म) का ही एक रूप है. कविता एक बेहद मामूली, रोजमर्रे के ज़रूरी सामन के रूप में होनी चाहिए, जैसे कि बागवानी के लिए खुरपी, सफाई के लिए झाड़ू, खाने के लिए थाली, आंसू पोंछने के लिए रुमाल, घिसाई के लिए रेगमाल. 
-कात्यायनी 



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