स्कैच : वारूणी |
टूटकर खून की नदी में जा गिरा
घुन खाया चांद परिक्रमा करता रहा धरती की,
सपने टूटते रहे
धरती की गोद में बह रही है
खून की नदी,
कितने ही सपने इसमें डूब चुके हैं,
मां का प्यारा बेटा भूखा है,
बेबस हो वह रोटी की गोलाई और रोटी ढूंढता है,
सपने में रोटी पर मां की उंगलियों के निशान ढूंढता है,
उसकी मां के पैरों से खून रिस रहा था
वह गुजर गई 300 किलोमीटर चलने के बाद
रोटी नहीं बना पाई बेटे के लिए,
रोटी नहीं है बस आंसू और घुटन है
सपनों के चांद को घुन लगी हुई है,
उसी चांद को जो मां की रोटी की गोलाई था,
कितने ही सपने इस नदी में डूब चुके हैं
रोटी की गोलाई खो चुका चांद
घुमता रहा धरती के चारों ओर
सपनों के बिखरे टुकड़ों ने नदी का खून सोख लिया है,
एक रासायनिक क्रिया से आंसू और घुटन में खौलकर
ये इस्पात में ढल जाते हैं,
बच्चों के सपने कुत्ते नहीं नोच सकते,
खून और इस्पात के वेग में
एक दिन बहा ले जाएगी यह नदी
सभी रोटी छिनने वालों को।
-सनी
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