इस बार जितनी गहरी है मेरी उदासी
उतनी कभी न थी
क्रोध, ज्यों जड़ीभूत अग्निपिण्ड ।
इस बार मेरी विरक्ति
एक ठण्डी हिमशिला-सी अविचल है।
कोई घट-बढ़ नहीं।
रुका हुआ है जैसे सब कुछ एक अर्से से ।
यह तनाव जो निरन्तर बना हुआ है
पागल बना पाने में फिर भी
असफल है
जो भी होगा
अब इसका नतीजा भीषण रूप से निर्णायक होगा।
एकदम नया होगा कुछ।
हवा जो एकदम रुक सी गयी है।
-शशि प्रकाश
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