क्यों बहे थे आँसू?
आँसुओं का स्रोत क्या है?
बस अब बहे चले आते हैं।
सोचकर देखा, जाना कि
स्मृति और सपने उलझ गए हैं
यथार्थ में।
यथार्थ ही तर्क संगत है।
बन्द रास्ता है जहाँ खड़ा हूँ।
मैं अपने प्रतिद्वंदी की आलोचना करते करते खुद अपना प्रतिद्वंदी बन गया।
विपरीत एक होते हैं।
पाया कि उन्हें ही नहीं समझ पाया जिसे समझने का दावा था।
बन्द रास्ते पर एक आईना रखा है।
अतीत झाँक रहा इस आईने में।
मैं पीछे हटता हूँ।
आँसुओं से भर जाता है पूरा शहर
मकान, सड़कें और घंटाघर सब डूब जाते हैं।
थम जाते हैं।
कोई ऊँची इमारत से खड़ा हो पढ़ रहा मेरी माँ की
हरे रंग की डायरी।
उसने लिखा है
अकेलेपन से डर लगता है।
नहीं, माँ जैसे नहीं जीना था जीवन
अकेले, घुटन भरे इंतज़ार और प्यार के बिना।
साझा करने की थी कोशिश हमेशा ही
दुख, सुख और सपने।
पर मैंने जाना कि
उस डायरी का पन्ना हूँ मैं।
रोज़ बदलती हैं इबारतें।
यहाँ आता हूँ समय से वक़्त माँगकर।
यथार्थ ही तर्क संगत है।
प्रतिलिपि नहीं मैं प्रतिद्वंद्वी की।
जो अभी यथार्थ नहीं काल्पनिक है तर्क संगत है,
यथार्थ बन जायेगा।
स्मृतियों में दरारे पड़ती हैं
सपने फिर पुनर्नवा होते हैं।
पुराना मर जाता है, नया जन्मता है।
यथार्थ अयथार्थ बन जाता है।
आँसू तारे बन जाते हैं,
बहते हैं, नष्ट होते हैं
स्मृतियाँ बनते हैं।
यथार्थ से उलझकर उसे बदल देते हैं।
No comments:
Post a Comment