Thursday, May 16, 2024

गाज़ा में रंग और धुन


वक़्त चीख रहा है, 

जले खेतों में सेटलर बुल्डोज़र हैं, 

टूटे मकानों में लोहे के सरिये मुड़े हुए हैं, 

कोंक्रिट के जंगल में माँस और खून की गंध बस चुकी है, 

आसमाँ से आग बरसती है

हमारे सपने जल रहे और श्रापनेल धँस गया है रंगों में

रोशनी में कीचड़ है बूटों की, 

हमारी धुन बहरी हो गयी है, 


मेरे दिल में

श्रापनेल का टुकडा धँसा है, 

इसे कैसे निकालूँ? 

निकालूँ या नहीं? 

यही तो खून बहने से रोक रहा। 


खाका ढह गया है, 

पर न मर सकी हैं स्मृतियाँ, 

रंग, खुशबू, मिठास और धुन 

खून से जन्म रही। 

फ़िलिस्तीन भी यहीं से जन्मता है। 

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