Thursday, December 23, 2010

युवा युयुत्सु युनाम(1)

जानते थे हम
एक दिन हमें पीछे हटना होगा.
हम अभी कमज़ोर हैं,
बहुत अधिक कमज़ोर,
ब्यूनस आयर्स और मेक्सिको सिटी
और वाशिंगटन  सिटी कि हत्यारी शक्ति के आगे.
इसलिए आओ हत्यारो,
यह समय तुम्हारा है.
अभी पारी तुम्हारी है.
आओ,
कंटीले तारों, संगीनों,
शिकारी कुत्तों, सिक्कों और बलात्कारी पौरुष के साथ
और कहो
अपने विद्वान तुंदियल मकड़ों से
पांडित्य के बारीक नीले धागों से
जाला बुनने के लिए,
नकली गरिमा भरे भारी-भरकम शब्दों से
ओस और आँसूं सने पंखों को
कुचल देने के निर्देश दे दो
हाथों में कलम साधे  जल्लादों को,
दीमकों से कहो, वे फिर से
हमारी आत्माओं में घुसकर
अपना काम शुरू कर दें.
हमारा 'युनाम'
हम दो लाख सत्तर हज़ार युवाओं का 'युनाम'
अब फिर तुम्हारा है.
पर याद रखना
हमारे कब्ज़े के नौ माह,
हमारी इस लड़ाई ने
धारण किया गर्भ में
फिर से एक विचार, एक स्वप्न.
उसे तुम मार नहीं सकते.
जैसे पहाड़ों में जीवित है
ज़पाटिस्टा आग,
वैसे ही हमारे दिलों में
सुलगता रहेगा.
ट्रेड यूनियनों के मददगार साथियो,
जांबाज़ ज़पाटिस्टा कामरेडो,
शुक्रिया नहीं कहेंगे तुम्हें,
कहेंगे, 'संघर्ष ज़िंदाबाद'
इक्कीसवीं  सदी के जलते मेक्सिको में,
हम जानते हैं कि
हमने लड़ाई में गलतियाँ भी कीं
नासझी भरी, बचकानी, युवा-सुलभ,
पर हमने सिखा.
यह सिखने
और याद रखने कि एक छोटी सी लड़ाई थी.
हमने पाया कि
हमें भुला नहीं है 2 अक्टूबर 1968 का दिन,(2)
न गलियों में बहता वह लहू, न संगीनें,
न धुआं, न राख.
हमने पाया कि
हम लड़ सकते हैं
और यह भी कि
लोग हमारे साथ हैं.
शुक्रिया पिताओ  और माताओ
कि आँसूं जज़्ब करते हुए
दुखते दिलों को दबाकर
तुमने हमसे कहा, 'डटे रहो.'
शुक्रिया नागरिको,
उस रसद के लिए
जो तुमने हमारे सामूहिक भोजनालयों में भेजी.(3)
घबराना नहीं,
उनकी जेलें तोड़ नहीं सकतीं
जुआन कार्लोस ज़राते, रोड्रिगो फिगुएरोवा,
रिकार्डो मार्तम्नेज़ और अलेक्ज़ांड्रो इचेवार्रिया(4)
और उन जैसे दूसरों को.
हमने महज़ एक छोटी सी लड़ाई लड़ी है
सीखने की,
याद करने की
और जुड़ने और जोड़ने की
और तैयारी करने कि
और यह छोटी-सी लड़ाई लड़ी है
 चीले में सांतियागो, वाल्पारैसो, कांसेप्सियोंन
और एरिका के
और बोलीविया में सान्ताक्रुज़ के
हमारे भाइयों ने. (5)
हम समझने लगे हैं
कि चीज़ों को अँधेरे से बाहर लाकर
पहचान देना कितना ज़रूरी है,
कितना ज़रूरी है
खोयी हुई चीज़ों को
वाल स्ट्रीट से वापस लाना
अपने जंगलों और अपनी नदियों कि तलहटी में
और यह जानना कि
हमारी लातिनी दुनिया कि ज़िन्दगी
अँधेरे में खड़ी पत्थर कि दीवार नहीं है.
हम कहेंगे उनसे कि
तुम ऐसा नहीं कर सकते,
हमारी दुनिया का रहस्य
तुम्हारी मण्डी में बिकने के लिए नहीं है.
उसे लौटा दो
हमारे जंगलों कि बसंत कि फड़फड़ाहट
और प्यारे बूढ़े पतझड़ और स्वप्नों
और पानी के विद्रोह के साथ.
हम समझने लगे हैं
दुनिया कि तमाम लड़ाइयों
और पराजयों
और दुरभिसन्धियों को.
यह तो जानते थे हम
कि हमें इस बार पीछे हटना होगा.
अभी जो धुल बैठ रही है
चीजों पर,
उसे वहाँ बैठना ही है
क्योंकि वह उड़ चुकी है.
वह झाड़ी जाएगी
महाद्वीपों  की चादरों से
बहुत मेहनत, तरतीब और सलीके के साथ.
फिर एक बार इन्द्रधनुष कि
प्रत्यंचा खिंचेगी और छूटेगी
और तीर कि तरह यह सदी
एक नयी, बड़ी दुनिया में जा गिरेगी.
शशि प्रकाश

संदर्भ
1. अप्रैल 1999   में लातिनी अमेरिका के सबसे बड़े विश्वविद्यालय 'नेशनल ऑटोनोमस यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेक्सिको' (युनाम) के २,70,000  छात्र-छात्राओं ने फीस में भयंकर बढ़ोतरी के खिलाफ ज़ोरदार आन्दोलन शुरू किया था. 25  अप्रैल को हड़ताली छात्रों ने युनाम के विशाल कैम्पस पर कब्ज़ा कर लिया और एक ऐतिहासिक लड़ाई शुरू की. नौ महीने तक विश्वविद्यालय छात्रों के कब्ज़े में रहा और छात्रों-युवाओं-शिक्षकों-करमचारियों-मजदूरों और किसानों के एकजुट संघर्ष की अविस्मरणीय  मिसालें यहाँ कायम हुयीं. 6  फरवरी 2000  को अर्धसैनिक बलों और भारी पुलिस बल ने धावे बोलकर इस आन्दोलन को कुचल दिया.
2. दो अक्टूबर 1968 को सेना ने छात्रों के एक प्रदर्शन पर बर्बर हमला किया जिसमें 60 से ज़्यादा नौजवान  मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए.
3. युनाम पर नौ महीने के कब्ज़े के दौरान छात्र सामूहिक भोजनालय चलते थे जिसके लिए अभिभावक, मज़दूर यूनियनें और आन्दोलन के शुभचिंतक हर हफ्ते कई टन खाद्य-सामग्री भेजते थे.
4. सादी वर्दी में पुलिस के लोगों ने बहुत से छात्रों कि पिटाई की. इनमें छात्रों के नेता रिकार्डो मार्तम्नेज़ और अलेक्ज़ांड्रो इचेवार्रिया के नेता कार्लोस ज़राते, रोड्रिगो फिगुएरोवा भी शामिल थे.
5. चीले के चार प्रमुख शहरों-सांतियागो, वाल्पारैसो, कांसेप्सियोंन और एरिका में 20 मई 1999 को छात्रों ने और नवम्बर में बोलीविया के सांताक्रूज़ विश्वविद्यालय की स्वायत्तता ख़त्म करने के विरोध में उग्र प्रदर्शन किये.

Wednesday, December 15, 2010

जैक लन्डन की कविता

धुल की जगह राख होना चाहूँगा मैं
मैं चाहूँगा कि एक देदीप्यमान ज्वाला बन जाये
भड़ककर मेरी चिंगारी
बजाय इसके कि सड़े काठ में उसका दम घुट जाये,
एक उंघते हुए स्थायी गृह के बजाय
मैं होना चाहूँगा एक शानदार उल्का
मेरा प्रत्येक अणु उद्दीप्त हो भव्यता के साथ,
मनुष्य का सही काम है जीना, न कि सिर्फ जीवित रहना,
अपने दिनों को मैं बर्बाद नहीं करूँगा
उन्हें लम्बा बनाने कि कोशिश में,
मैं अपने समय का इस्तेमाल करूँगा.
जैक लन्डन

Thursday, December 9, 2010

There Are Some Folk Who Money Covet

There are some folk
          who money covet,
as heathens
          idols, long ago,
they cannot
          get sufficient of it,
but this will not be always so.
There are some folk
          who crave for power,
who know no curbs,
          nor ken its worth,
but soon will come their final hour,
and other times will come to earth.
There are some folk
          pursuing glory,
it seems
          that legion is their name,
their only hope,
          that in some story
their names
          for ever will remain.
It seems
          that power and adulation,
are really
          very much like brine:
You drink and drink
          without cessation,
and still you’re thirsty
          all the time.
Your own,
          your private
                    immortality
is not
          in station,
                    rank or birth:
your this, your that—
                    what triviality—
it’s in the future
                    of your earth!
And since
          the earth began its spinning,
since man
          upon his feet first stood,
we see at last,
                    the faint beginning
of universal
          brotherhood.
May every
          colour
                    be invited,
to share
          the world’s
                    abundant good,
to come together,
                    live united,
as decent human beings should.

NIKOLAI ASEYEV

Poem Of Pabula Neruda

And you'll ask: why doesn't his poetry
speak of dreams and leaves
and the great volcanoes of his native land?
Come and see the blood in the streets.
Come and see
The blood in the streets.
Come and see the blood
In the streets!
Pablo Neruda

Monday, December 6, 2010

If You Are Young

Where spring is pulsating
Amidst violent autumn and desolate winter
That is where you belong
If you are young!
Where future-symphony is playing
Where dreams are on a journey to discover
Where audacious projects of approaching is being forged
Where memories are fuel,
Filled in the heart of workman’s furnace
Where restless hot air is giving momentum to life
You have to be there
If you are young!
Where life is being uprooted
Where living words are being murdered
And where verdicts are passed on voices
For incarceration and solitude,
Where exiled flora
And black baking rocks are present
Therse you are being awaited
If you are young!
Where barricades of resolves are being raised
Where bunkers of knowledge are being dug
Where flags of challenges are being unfurled
There is where you have to be deployed
If you are young!
Shashi Prakash

Song of Dry Orange Tree


Woodsman,
chop down my shadow.
Free me from the torture
of not bearing fruit.
Why was I born among mirrors?
Around me day dances
and night copies me
onto her stars.
I want to live blind to myself.
And I’ll dream
that ants and burrs
are my leaves and my birds.
Woodsman,
chop down my shadow.
Free me from the torture
of not bearing fruit.
LORCA

Thursday, November 25, 2010

Cry to Rome


The teachers show the children
a marvellous light coming from the mountain;
but what arrives is a union of sewers
where the dark nymphs of cholera scream.
Devoutly the teachers point out huge fumigated domes;
but beneath the statues there’s no love,
no love beneath the eyes set in crystal.
Love is there, in
in the tiny hut struggling against the
love is there, in ditches where snakes of hunger wrestle,
in the sad sea that rocks dead gulls,
and in the darkest stinging kiss under pillows.
But the old man with the luminous hands
will say: love, love, love,
cheered on by millions of the dying;
will say: love, love, love,
in the shimmering tissue of tenderness:
will say: peace, peace, peace,
among shivering knives and melons of dynamite;
will say: love, love, love,
until his lips turn to silver.
Meanwhile and meanwhile and meanwhile,
blacks collecting up the spittoons,
boys trembling beneath directors’ bloodless ferocity,
women drowned in mineral oils,
crowd with hammer, violin or cloud
must yell even if their brains splatter on the wall,
yell before the domes,
yell maddened by
yell maddened by snow,
yell with heads full of excrement,
yell like every night in one,
yell with a voice torn terribly
until cities tremble like girls
and burst the prisons of oil and music,
because we want our daily bread,
alder-flower and everlasting harvest of tenderness,
because we want Earth’s will be done,
the Earth that gives her fruit to all.
LORCA

Thursday, November 18, 2010

तस्वीर

An oil painting by the German artist Gerhard Richter.
सुखकर गाढ़ी होती गहरी नीली यादें
फैलाया हुआ पीला इकरार इंकार
हल्का हरा दुःख लाल सुख में मिला हुआ
सफ़ेद सच सबसे आगे सबके पीछे ओझल
कुछ  हल्की, कुछ गहरी रेखाएं जैसे नयी, पुरानी उम्मीदें
कुछ मिटते, कुछ उभरते हुए  आकार  जैसे नए, पुराने सपने
अधूरी अभिव्यक्ति
एक उभरती आकृति
न ख़त्म होती तस्वीर
जैसे ज़िन्दगी