प्यारे फलीस्तीन
मैं कैसे सो सकता हूँ
मेरी आँखों में यातना की परछाई है
तेरे नाम से मैं अपनी दुनिया संवारता हूँ
और मैं अपनी भावनाओं को
छुपाकर ही रखता दिनों के काफिले गुजरते हैं और बातें करते हैं
दुश्मनों और दोस्तों के साजिशों की
प्यारे फलीस्तीन
मैं कैसे जी सकता हूँ
तेरे टीलों और मैदानों से दूर
खून से रँगे
पहाड़ों की तलहटी
मुझे बुला रही है
और क्षितिज पर वह रंग फ़ैल रहा है
हमारे समुद्र तट रो रहे हैं
और मुझे बुला रहे हैं
भागते हुए झरने मुझे बुला रहे हैं
वे अपने ही देश में परदेसी हो गए हैं
तेरे यतीम शहर मुझे बुला रहे हैं
और तेरे गाँव और गुंबद
मेरे दोस्त पूछते हैं-
'क्या हम फिर मिलेंगे?'
'हम लोग लौटेंगे?'
हाँ, हम लोग उस सजल आत्मा को चूमेंगे
और हमारी जीवंत इच्छाएं
हमारे होठों पर हैं कल हम लौटेंगे
और पीढियां सुनेंगी हमारे क़दमों की आवाज़
हम लौटेंगे आँधियों के साथ
बिजलियों और उल्काओं के साथ
अपनी आशा और गीतों के साथ
उठते हुए बाज के साथ
पौ फटने के साथ
जो रेगिस्तानों पर मुस्कराती है
समुद्र की लहरों पर नाचती सुबह के साथ
खून से सने झंडों के साथ
और चमकती तलवारों के साथ
और लपकते बरछों के साथ
हम लौटेंगे
अबू सलमा
अबू सलमा
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